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छींटाकशी का प्रतिफल

देवी विभूति
देवी विभूति
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छींटाकशी का प्रतिफल
किसी की कमजोरी ही क्यों न सही, उस पर छींटाकशी स्वयं के अपने मनो मस्तिष्क में कही न कही एक धब्बे के रूप में घर कर जाती है. जो समय असमय टीसती रहती है. यदि कोई गलती है, गन्दगी है, कमी है, तो हमारा लक्ष्य बार बार उस गन्दगी को साफ़ करना नहीं बल्कि उस मूल कारण को ढूँढना होना चाहिए जहां से और जिस कारण से उसका उत्सर्जन हो रहा हो.
मैंने  इस मंच के ढेर सारे लेख पढ़े. मस्तिष्क में अनेक तरह के विचार आये. कभी लगा की यह मंच कुछ लोगो के द्वारा अपनी बुद्धिमता के प्रचार-प्रसार के रूप में प्रयुक्त हो रहा है. तो कुछ लोग अपनी धारणा दूसरे पर जबरदस्ती थोपने का प्रयास कर रहे है. कुछ वाह वाही के लिए लिख रहे है. और कुछ ऐसे भी है जो इस मंच का प्रयोग मित्रता स्थापित करने के लिए कर रहे है.
मित्रता एवं निकटता स्थापित करना तो सराहनीय है. किन्तु अपनी असफल वाक्पटुता का प्रदर्शन उपहास का कारण बन जाती है. यदि हम कुछ लिखते है. तो यह नहीं समझना चाहिए की पढ़ने वाले सब मूरख या ना समझ या मनोभाव को ताड़ जाने वाले नहीं होगें. यदि इस मंच का कोई लेखक किसी लेख को पढ़ता है. तो अवश्य ही इतनी बुद्धि रखता होगा.
वैसे भी प्राकृतिक बागीचे में फूलो की कई प्रजातियाँ पायी जाती है. कुछ सुगंध देने वाले फूल, कुछ सुन्दर दिखाई देने वाले, कुछ छोटे, कुछ बड़े, कुछ भड़क दार कुछ सौम्य रूप रंग वाले तथा कुछ दुर्गन्ध फैलाने वाले एवं विषाक्त.
हमें इस मंच के सुन्दर एवं सुगन्धित फूलो के रूप-रंग एवं आह्लादित करने वाले स्वभाव की तरफ अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिए. ताकि इस भाग दौड़ की ज़िंदगी में कम से कम क्षणिक सुख तो मिल सके. हो सकता है, विषैले एवं दुर्गन्ध युक्त पुष्प भी किसी को पसंद हों. तो अपनी अपनी पसंद.
मुझे नहीं मालूम इस मंच से मुझे क्या सीखने को मिलेगा, किन्तु विविध मंदिरों के दर्शन तो हो ही जायेगें. चाहे वे देवताओं के हो या दैत्यों के. फिर भी मुझे किसी से कोई शिकायत तो नहीं होनी चाहिए. चाहे कोई गाली लिखे, चुगली करे, स्तुति गान करे, दार्शनिक विश्लेषण प्रस्तुत करे या भोंडा मजाक. मै भर सक पढ़ने का ही प्रयास करूंगा. क्योकि पढ़ने से ही उसकी दिन चर्या, आचार-विचार, स्वभाव एवं उद्देश्य का पता चल जाएगा.
क्योकि ख़त का मज़मून जानते लिफाफा देख कर.
सत्य सत्य है और असत्य असत्य. आलोचना या छींटाकशी से न तो सच्चाई असत्य हो सकती है और न ही झूठ सच. और मै जहां तक इस मंच को देखा हूँ, इस के सभी लेखक इतने सक्षम है की बिना किसी स्पष्टीकरण के तथ्य का सटीक अनुमान लगा लेगें. फिर क्यों न आलोचना या छींटाकशी से दूर उसे ठेस न पहुंचाते हुए उसके लेख के रूप में उसे पढ़ते रहे. जब तक इच्छा हो. शायद मै ठीक सोच रहा हूँ. और जहां तक संभव हो सकेगा, यही करने का प्रयास करूंगा. आगे का नहीं मालूम.
विभूति

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