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जागरण जंक्शन के प्रति हार्दिक आभार

देवी विभूति
देवी विभूति
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जागरण जंक्शन : मेरा आभार
किसकी किस्मत कब कहाँ खुल जायेगी, इसे कोई नहीं जानता। आदमी को बस निराश नहीं होना चाहिए। निरंतर काम करते रहना चाहिए। एक और बात यह कि जिस विषय में अनभिज्ञता हो उसे कभी भी झूठा नहीं कहना चाहिए। या उसे अपमानित नहीं करना चाहिये।भले उसका अनुकरण करे या न करें। क्योकि ऐसा कदापि नहीं है कि किसी को हर विषय का ज्ञान होवे ही।
मेरे परिवार में नास्तिकता नहीं है। किन्तु हम बस आवश्यक आस्था ही रखते हैं। अर्थात रोज का पूजा पाठ या ऐसा कोई प्रतिबन्ध नहीं है। ज्योतिष, कुंडली, यंत्र-मन्त्र आदि में हमारे यहाँ कोई विशेष आस्था नहीं है। यह अलग बात है की आज की तिथि में मैं इसका अन्धानुयायी हो चुका हूँ।
जी हाँ, मेरा एक बेटा एवं एक बेटी है। बेटा यूएसए में रहता है। वही पर नौकरी करता है। लाखो रुपये से ऊपर उसका प्रति माह वेतन है। बेटी भी वही पर रिसर्च स्कालर है। घर पर मैं एवं मेरी पत्नी रहते हैं। मई 2011 में मेरी बेटी अचानक घर आयी। यद्यपि उसने पांच दिन पहले सूचना दे दी थी। किन्तु यह प्रोग्राम तो अचानक ही था। वह घर आयी। हम पति-पत्नी दोनों ही चौंक पड़े। भारी सदमा लगा। काटो तो खून नहीं। बेटी के चहरे पर दो बड़े सफ़ेद दाग देख कर हमारा दिल बैठने लगा। मेरी श्रीमती जी तो रोने लगीं। किन्तु मैं अपने कलेजे पर पत्थर रखकर समझाना शुरू किया। माँ-बेटी दोनों रो रही थीं। मैंने बताया की दुनिया में विज्ञान बहुत उन्नति कर चुका है। यह रोग अब लाइलाज नहीं रह गया है। समझा बुझा कर दोनों को अन्दर भेजा। किन्तु मेरा दिल बैठा जा रहा था।
एक तो भारत जैसा रूढीवादी देश, दूसरे लड़की की जात। इस रोग वाली लड़की से कौन अच्छा लड़का शादी करेगा? आज तक की सारी मान प्रतिष्ठा धूल में मिलती नज़र आ रही थी। समाज में मैं कैसे खडा होकर बातें करूंगा? लोग मुझे घृणा की दृष्टि से देखेगें। इतनी सुन्दर तथा पढी लिखी लड़की की ज़िंदगी में मानो आग लग गयी। मेरे मन में भूचाल जैसा घूम रहा था। थोड़ी देर आराम करने के बाद मैंने बिटिया को हाल में बुलाया। उसकी माँ भी आयी। मैंने लड़की से पूछा कि क्या तूने इसका लैब टेस्ट कराया? उसने पैथोलाजिकल रिपोर्ट दिखाई। उसमें आरइएम (ग्रंथि कुष्ठ) डिटेक्ट हुआ था। मेरा दिल बैठ गया। यद्यपि बेटी इस सच से वाकिफ हो चुकी थी। फिर भी मैंने उसे दिलासा दिया। और अगले दिन कार्यालय जाकर हेड आफिस को सूचित कर दो महीने की छुट्टी ले लिया। तथा उसके चौथे दिन ही हम बाप-बेटी वाशिंगटन डीसी के लिये चल दिये। वहां पर मेरे एक मित्र एवं सहपाठी चर्म रोग के विशेषज्ञ है। 16 मई 2011 को मैं उनसे मिला। उन्होंने देखा। कुछ टेस्ट एवं दवाएं लिखा। दवा शुरू हो गयी। मेरी दो महीने की छुट्टी समाप्त हो गयी। मैंने फिर दो महीने की छुट्टी ली। दवा चलती रही। रोग बढ़ा तो नहीं। किन्तु उसमें कोई सुधार नहीं हुआ। मैने फिर दो महीने की छुट्टी बढ़ा ली। मेरे एम् डी मेरी हालात से वाकिफ हो चुके थे। अतः उन्होंने मुझे ढाढस बंधाते हुए छुट्टी दे दी। छ महीने बीत गए। लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। जैसा कि मैंने देखा, बिटिया ने भी दिल पर पत्थर रख कर हालात एवं मज़बूरी से समझौता कर लिया था। और मुझे संकेत मिल चुका था कि अब यह दाग मिटने वाला नहीं है। मैं नवम्बर 2011 में घर चला आया। तथा ड्यूटी ज्वाइन कर लिया। न तो खाना अच्छा लगता था। न आफिस जाना अच्छा लगता था। कोई बात भी करता था। तो मुझे बहुत बुरा लगता था।
इधर मेरी श्रीमती जी ने कुछ ओझा सोखा का चक्कर पाल लिया। पता नहीं कौन यंत्र, पूजा अनुष्ठानं आदि के फेरे में घूमती रहीं। लाखो रुपये उन्होंने भी फूंक डाले। पर परिणाम ढाक के तीन पात ही निकले। और हम हार थक कर निराश होकर बैठ गए।
26 जनवरी 2012 वृहस्पतिवार का दिन, कार्यालय बंद रहते है। किन्तु राष्ट्र ध्वज फहराने तो जाना ही था। मैं आनन् फानन में झंडा वगैरह फहराकर तथा कुछ मिठाई आदि बाँट कर जल्दी से घर वापस आ गया। तथा समाचार पत्र पढ़ने लगा। राजस्थान पत्रिका का हिंदी संस्करण मेरे घर आता है। अचानक मेरी नज़र एक लेख पर पडी। वह लेख मुझे अजीब किस्म का लगा। मैंने पत्रिका कार्यालय फोन किया। किन्तु छुट्टी होने के कारण किसी ने फोन नहीं उठाया। अगले दिन मैंने पत्रिका कार्यालय के बंगलौर आफिस में फोन करके उस लेख के लेखक का फोन नंबर माँगा। नंबर तो मैंने ले लिया। किन्तु फिर मुझे अपने आप पर हंसी आयी। क्या मैं भी मूर्खों जैसी हरकत करने जा रहा हूँ? फिर पंडितों एवं टोना टोटका के चक्कर में पड़ने जा रहा हूँ। मैंने तत्काल फोन करने का विचार त्याग दिया।
उसी दिन रात को अचानक नेट पर फिर उसी लेखक का लेख देखा। लेख बड़ी अजीब लगे। मुझे समझ में नहीं आ रहा था की ये ज्योतिषीय लेख थे या किसी मेडिकल पैथोलाजिस्ट के लेख थे। मैंने अपनी श्रीमतीजी को वह लेख दिखाया। हम दोनों ने जागरण जंकशन पर प्रकाशित उस महान लेखक के समस्त लेख पढ़ डाले। फोन नंबर भूल गया था। मैंने फिर अगले दिन पत्रिका कार्यालय फोन करके फोन नंबर लिया। मैंने बात किया। उस महान विभूति ने जैसे बात किया, मुझे बहुत गुस्सा एवं भय हुआ। किन्तु मुझे बाद में जब यह ज्ञात हुआ कि यह व्यक्ति एक फौजी है न कि व्यावसायी, तो मुझे और ज्यादा आश्चर्य हुआ। एक फौजी का इस धरातल से संपर्क-सम्बन्ध कुछ अटपटा लग रहा था। खैर मैंने उनके कहे अनुसार जन्म कुंडली बनवायी यद्यपि हमारे कुल की परम्परा में लड़कियों की कुंडली नहीं बनवायी जाती है। या यूँ कहिये कि हम कुंडली आदि में ज्यादा विशवास या भरोसा नहीं करते है। क्षमा कीजिएगा, मैं आज के पहले की बात कर रहा हूँ। आज तो मैं समझ रहा हूँ की सिवाय आयुर्वेद एवं ज्योतिष के कुछ है ही नहीं। क्योकि जैसा मेरे साथ गुजरा है, भगवान न करे किसी के साथ गुजरे।
अस्तु, मैं उस महान व्यक्ति के बताये अनुसार करता गया। यह सारा क्रिया कलाप महाशिवरात्री को शुरू हुआ। बिटिया आई हुई थी। बहुत पैसा तो खर्च हो गया। और मैं यह सोच कर खर्च करता गया कि जैसे आज तक इतना खर्च हुआ, एक बार और सही। मैं पैसे का नहीं उस निर्दोष लड़की का मुंह देख रहा था। मई 2012 में बेटी का फोन आया कि दाग हलके पड़ गये है। मैं सच बताऊँ, मेरी खुशी एवं जोश का ठिकाना नहीं था। मैंने फिर पंडित जी को फोन किया। किन्तु फोन बंद था। उसके बाद मैं बहुत बार फोन किया। किन्तु फोन हमेशा बंद मिला। फिर मैं सोचा कि ब्लॉग पर टिप्पड़ी के माध्यम से संपर्क करूँ। किन्तु लाज एवं संकोच वश ऐसा नहीं कर पा रहा था। परसों बिटिया घर आयी है।
चेहरा बिलकुल साफ़। कही कोई दाग-निशान नहीं। पैथोलाजिकल रिपोर्ट भी बिलकुल क्लीयर है। किसी भी मेलिग्नेन्सी का कोई डॉट नहीं है। हमारे खुशी के आंसू रुक नहीं रहे है। आज घर पर माता का जगराता रखा गया है। हम सपरिवार उस महान लोकोपकारी व्यक्ति से मिलने को लालायित है। देखें, संपर्क हो पाता है या नहीं।
और मैं इस जागरण जंक्शन मंच का आजीवन आभारी रहूँगा जिसने मुझे जिन्दगी का वह पल दिखाया है जो मुझे सारी दुनिया घूमने के बाद भी नहीं मिल पाया। यह ठीक है कि उस पंडितजी के आशीर्वाद एवं प्रयत्न से आज मैं यह खुशी का दिन देख रहा हूँ। किन्तु यह माध्यम मुझे जागरण जंक्शन ने ही सुलभ कराया। मैं इस मंच का सतत आभारी रहूँगा।
मुझे आज पता नहीं क्यों इस मंच का प्रत्येक लेखक ही दिव्य शक्ति संपन्न लग रहा है। पता नहीं किसके लेख से कब किसका भला हो जाये। निश्चित रूप से किसी अदृष्य शक्ति की प्रेरणा ही खींच कर मुझे जागरण जंक्शन तक पहुंचाई। मैं ईश्वर से प्रार्थना करूंगा कि यह मंच निरंतर उन्नति करे। लेखको को और ज्यादा ज्ञान मिले। ताकि जन समाज का कल्याण हो सके।मैं एक बार फिर सच्चे मन से जागरण जंक्शन को अपना हार्दिक आभार देता हूँ।

विभूति

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